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Showing posts from December, 2017

आइए, जानते हैं श्री कृष्ण की प्रचलित जन्म कुंडली के आधार पर कैसे हैं भगवान श्रीकृष्ण के जगमगाते सितारे। उच्च के 6 ग्रह, लग्न में एक स्वराशि का होने से श्रीकृष्ण सामने वाले की मन:स्थिति को जानने वाले तथा पराक्रमी बने। पराक्रम भाव में उच्च का एकादशेश व अष्टम भाव का स्वामी होने से श्रीकृष्ण से मृत्यु पाने वाले उनकी मृत्यु का कारण भी बने। पंचम भाव में उच्चस्थ बुध के साथ राहु ने आपको अत्यंत विलक्षण बुद्धि तथा गुप्त विद्याओं का जानकार बनाया। षष्ठ भाव में उच्चस्थ शनि होने से श्रीकृष्ण प्रबल शत्रुहंता हुए। सप्तमेश मंगल उच्च होकर नवम भाव है अत: भाग्यशाली रहे। चतुर्थेश सूर्य स्वराशि में होने से हर समस्याओं का समाधान श्रीकृष्ण कर सके। उनके समक्ष बड़े से बड़ा शत्रु भी न टिक सका। सर्वत्र सम्मान के अधिकारी बने। उच्च के चन्द्र से चतुर, चौकस, चमत्कारी, अत्यंत तेजस्वी, दिव्य और अनेक विलक्षण विद्याओं के जानकार रहे।

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आइए, जानते हैं श्री कृष्ण की प्रचलित जन्म कुंडली के आधार पर कैसे हैं भगवान श्रीकृष्ण के जगमगाते सितारे।  उच्च के 6 ग्रह, लग्न में एक स्वराशि का होने से श्रीकृष्ण सामने वाले की मन:स्थिति को जानने वाले तथा पराक्रमी बने।   पराक्रम भाव में उच्च का एकादशेश व अष्टम भाव का स्वामी होने से श्रीकृष्ण से मृत्यु पाने वाले उनकी मृत्यु का कारण भी बने। पंचम भाव में उच्चस्थ बुध के साथ राहु ने आपको अत्यंत विलक्षण बुद्धि तथा गुप्त विद्याओं का जानकार बनाया।    षष्ठ भाव में उच्चस्थ शनि होने से  श्रीकृष्ण प्रबल शत्रुहंता हुए। सप्तमेश मंगल उच्च होकर नवम भाव है अत: भाग्यशाली रहे। चतुर्थेश सूर्य स्वराशि में होने से हर समस्याओं का समाधान श्रीकृष्ण कर सके। उनके समक्ष बड़े से बड़ा शत्रु भी न टिक सका। सर्वत्र सम्मान के अधिकारी बने।    उच्च के चन्द्र से चतुर, चौकस, चमत्कारी, अत्यंत तेजस्वी, दिव्य और अनेक विलक्षण विद्याओं के जानकार रहे।

सुंदर है, मनोहर है, श्री कृष्ण जिनका नाम है

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संसार परमात्मा की अनूठी कृति है। वन, पर्वत, नदी, सागर, हिमालय, वनस्पति, जीव-जंतु एवं मानव यह इसकी शोभा हैं। यदि इनमें किसी भी प्रकार का विकार पैदा होता है तो परमात्मा की यह अनूठी रचना विनाश के कगार पर आ जाती है। इसी विकार को, जो वृहद् रूप ले चुका होता है, संतुलन में लाने के लिए कोई ऐसी शक्ति इस धरा में उतर आती है जिसे हम भगवान का अवतार कहते हैं, उसे पूजते हैं। उसे अपना आदर्श मानते हैं। द्वापर में एक ऐसी ही विभूति भाद्रपद कृष्णपक्ष की अष्टमी तिथि को मध्यरात्रि में अवतरित होती है जिसे "कृष्ण" कहा जाता है। भगवान कृष्ण ने अवतार से लीला संवरण तक एक भी ऐसा कर्म नहीं किया जो मानवता के उद्धार के लिए न हो।  श्रीकृष्ण जन्म का घटना क्रम भी बड़ा विचित्र था। कंस की मथुरा जेल में जहां चारों ओर कड़ा पहरा था, वहां हुआ श्रीकृष्ण का जन्म अर्थात्‌ जन्म लेने से पहले ही उन्हें मारने की सारी तैयारियां हो चुकी थीं। लेकिन महान कार्य के लिए संसार में आने वाले हर संकट को नष्ट कर अपने उद्देश्य की ओर बढ़ते रहते हैं। श्रीकृष्ण जन्म का घटनाक्रम यही संदेश देता है। जेल से वह किस प्रकार नंदभ...

भगवान शंकर ने दिया है विष्णु को सुदर्शन चक्र......

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भगवान विष्णु के हर चित्र व मूर्ति में उन्हें सुदर्शन चक्र धारण किए दिखाया जाता है। यह सुदर्शन चक्र भगवान शंकर ने ही जगत कल्याण के लिए भगवान विष्णु को दिया था। इस संबंध में शिवमहापुराण के कोटिरुद्रसंहिता में एक कथा का उल्लेख है। एक बार जब दैत्यों के अत्याचार बहुत बढ़ गए तब सभी देवता श्रीहरि विष्णु के पास आए। तब भगवान विष्णु ने कैलाश पर्वत पर जाकर भगवान शिव की विधिपूर्वक आराधना की। वे हजार नामों से शिव की स्तुति करने लगे। प्रत्येक नाम पर एक कमल पुष्प भगवान विष्णु शिव को चढ़ाते। तब भगवान शंकर ने विष्णु की परीक्षा लेने के लिए उनके द्वारा लाए एक हजार कमल में से एक कमल का फूल छिपा दिया।   शिव की माया के कारण विष्णु को यह पता न चला। एक फूल कम पाकर भगवान विष्णु उसे ढूंढने लगे। परंतु फूल नहीं मिला। भगवान विष्णु को कमलनयन भी कहा जाता है। तब विष्णु ने एक फूल की पूर्ति के लिए अपना एक नेत्र निकालकर शिव को अर्पित कर दिया। विष्णु की भक्ति देखकर भगवान शंकर बहुत प्रसन्न हुए और श्रीहरि के समक्ष प्रकट होकर वरदान मांगने के लिए कहा...

सुदर्शन चक्र कितने देवताओं के पास रहा, पढ़े अनूठी जानकारी

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सभी शस्त्रों में चक्र को छोटा, लेकिन सबसे  अचूक अस्त्र   माना जाता था। सभी देवी-देवताओं के पास अपने-अपने अलग-अलग चक्र होते थे। उन सभी के अलग-अलग नाम थे। भोलेनाथ के चक्र का नाम भवरेंदु है। विष्णुजी के चक्र का नाम कांता चक्र और देवी का चक्र मृत्यु मंजरी चक्र है।   सुदर्शन चक्र   भगवान कृष्ण   का चक्र है। दरअसल सुदर्शन चक्र का निर्माण   भगवान शंकर   ने किया था। निर्माण के बाद   भगवान शिवशंकर ने इसे श्रीविष्णु को सौंप दिया था। जरूरत पड़ने पर श्रीविष्णु ने इसे देवी पार्वती को प्रदान कर दिया। पार्वती ने इसे   परशुराम   को दे दिया और भगवान कृष्ण को यह सुदर्शन चक्र परशुराम से मिला। श्रीकृष्ण के पास   यह सदा के लिए रहा।                              ALSO READ: भगवान शंकर ने दिया है विष्णु को सुदर्शन चक्र हैहय वंश के राजा कार्तविर्यार्जुन सुदर्शन चक्र के अवतार माने गए। आज भी मान्यता है कि इनकी साधना करने से हर प्रकार की गुम वस्...

किसने और क्यों श्रीकृष्ण को दिया था सुदर्शन चक्र, जानिए रहस्य...

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बहुत कम लोग ही जानते होंगे कि आखिरकार श्रीकृष्ण के पास सुदर्शन चक्र कैसे और क्यूं आया। अर्थात किस तरह उन्हें सुदर्शन चक्र मिला। इस संबंध में हम आपके लिए वी.सावंतजी की किताब युगांधर से कुछ अंश निकालकर लाएं हैं।....सुदर्शन प्राप्ति और उसके प्रथम संचालन का अद्भुत वर्णन...   कंस वध के बाद श्रीकृष्ण को मथुरा छोड़कर जाना पड़ा था। कंस वध के बाद मथुरा पर शक्तिशाली मगध के राजा जरासंध के आक्रमण बढ़ गए थे। मथुरा पर उस वक्त यादव राजा उग्रसेन का आधिपत्य था।       श्रीकृष्ण ने सोचा, मेरे अकेले के कारण यादवों पर चारों ओर से घोर संकट पैदा हो गया है। मेरे कारण यादवों पर किसी प्रकार का संकट न हो, यह सोचकर भगवान कृष्ण ने बहुत कम उम्र में ही मथुरा को छोड़कर कहीं अन्य जगह सुरक्षित शरण लेने की सोची। दक्षिण में यादवों के 4 राज्य थे। पहला राज्य आदिपुरुष महाराजा यदु की 4 नागकन्याओं से प्राप्त 4 पुत्रों ने स्थापित किया था। यह राज्य मुचकुन्द ने दक्षिण ऋक्षवान पर्वत के समीप बसाया था। दूसरा राज्य पद्मावत महाबलीश्वरम के पास था। यदु पुत्र पद्मवर्...

श्रीकृष्ण चालीसा

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दोहा   बंशी शोभित कर मधुर, नील जलद तन श्याम।   अरुणअधरजनु बिम्बफल, नयनकमलअभिराम॥ पूर्ण इन्द्र, अरविन्द मुख, पीताम्बर शुभ साज। जय मनमोहन मदन छवि, कृष्णचन्द्र महाराज॥ जय यदुनंदन जय जगवंदन। जय वसुदेव देवकी नन्दन॥ जय यशुदा सुत नन्द दुलारे। जय प्रभु भक्तन के दृग तारे॥ जय नट-नागर, नाग नथइया॥ कृष्ण कन्हइया धेनु चरइया॥ पुनि नख पर प्रभु गिरिवर धारो। आओ दीनन कष्ट निवारो॥ वंशी मधुर अधर धरि टेरौ। होवे पूर्ण विनय यह मेरौ॥ आओ हरि पुनि माखन चाखो। आज लाज भारत की राखो॥ गोल कपोल, चिबुक अरुणारे। मृदु मुस्कान मोहिनी डारे॥ राजित राजिव नयन विशाला। मोर मुकुट वैजन्तीमाला॥ कुंडल श्रवण, पीत पट आछे। कटि किंकिणी काछनी काछे॥ नील जलज सुन्दर तनु सोहे। छबि लखि, सुर नर मुनिमन मोहे॥ मस्तक तिलक, अलक घुंघराले। आओ कृष्ण बांसुरी वाले॥ करि पय पान, पूतनहि तार्‌यो। अका बका कागासुर मार्‌यो॥ मधुवन जलत अगिन जब ज्वाला। भै शीतल लखतहिं नंदलाला॥ सुरपति जब ब्रज चढ़्‌यो रिसाई। मूसर धार वारि वर्षाई॥ लगत लगत व्रज...

भगवान श्रीकृष्ण के जन्म की पौराणिक कथा

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भाद्रपद कृष्ण अष्टमी तिथि की घनघोर अंधेरी आधी रात को रोहिणी नक्षत्र में मथुरा के कारागार में वसुदेव की पत्नी देवकी के गर्भ से भगवान श्रीकृष्ण ने जन्म लिया था। यह तिथि उसी शुभ घड़ी की याद दिलाती है और सारे देश में बड़ी धूमधाम से मनाई जाती है।     ' द्वापर युग में भोजवंशी राजा उग्रसेन मथुरा में राज्य करता था। उसके आततायी पुत्र कंस ने उसे गद्दी से उतार दिया और स्वयं मथुरा का राजा बन बैठा। कंस की एक बहन देवकी थी, जिसका विवाह वसुदेव नामक यदुवंशी सरदार से हुआ था। एक समय कंस अपनी बहन देवकी को उसकी ससुराल पहुंचाने जा रहा था।   रास्ते में आकाशवाणी हुई- 'हे कंस, जिस देवकी को तू बड़े प्रेम से ले जा रहा है, उसी में तेरा काल बसता है। इसी के गर्भ से उत्पन्न आठवां बालक तेरा वध करेगा।' यह सुनकर कंस वसुदेव को मारने के लिए उद्यत हुआ।  तब देवकी ने उससे विनयपूर्वक कहा- 'मेरे गर्भ से जो संतान होगी, उसे मैं तुम्हारे सामने ला दूंगी। बहनोई को मारने से क्या लाभ है?'  कंस ने देवकी की बात मान ली और मथुरा वापस चला आया। उसने वसुदेव और देवकी को कारागृह में डाल...